दुनियाभर में महिला सशक्तिकरण को लेकर बातें होती हैं. इसके लिए सरकारों से लेकर सामाजिक संगठनों तक ने काम किया है. कई कुप्रथाओं पर चोट किया गया है. हालांकि अभी भी कई ऐसे रिवाज हैं, जो महिलाओं पर अत्याचर हैं. इसी तरह का एक रिवाज महिलाओं का खतना कराना है. इससे दुनिया की महिलाओं को छुटकारा दिलाने और इसको लेकर जागरुकता फैलाने के लिए 6 फरवरी को इंटरनेशनल डे ऑफ जीरो टॉलरेंस फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन मनाया जाता है. पहली बार साल 2003 में इसे इंटरनेशनल लेवल पर मनाना शुरू किया गया था.
क्या होता है महिलाओं का खतना-
पुरुषों में खतना का रिवाज आम है. लेकिन दुनिया के कई देशों में महिलाओं के खतना का भी होता है. छोटी बच्चियों के प्राइवेट पार्ट को ब्लेड या उस्तरे से थोड़ा सा काट दिया जाता है. ये एक दर्दनाक प्रक्रिया है, जिसें काफी दर्द होता है. बच्चियों पर ये अत्याचार एक रिवाज के तहत किया जाता है. ये रिवाज ज्यादातर अफ्रीकी देशों में प्रचलित है.
एक बड़ी समस्या है खतना-
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक अफ्रीका और एशिया में इसका प्रभाव ज्यादा है. हालांकि यूरोप में 30 ऐसे देश हैं, जहां खतना प्रचलित है. साल 2020 में यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर की 20 करोड़ महिलाओं को इस अत्याचार को सहना पड़ा है. यह डाटा 31 देशों से जुटाया गया था. इस कुप्रथा का असर अफ्रीकी महाद्वीप में सबसे ज्यादा है. भारत में भी महिलाओं के खतना की कुप्रथा प्रचलित है. इसको लेकर मुहिम भी चलाई गई है. साल 2017 में बोहरा मुस्लिम समुदाय की कुछ महिलाओं ने इसको लेकर पीएम मोदी से मुलाकात की थी.
2030 तक खत्म करने का लक्ष्य-
महिलाओं का खतना रिवाज को लेकर दुनियाभर में जागरुकता अभियान चलाया जा रहा है. इस कुप्रथा को खत्म करने लिए समय सीमा भी तय की गई है. साल 2030 तक फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन की कुप्रथा को खत्म करने का टारगेट तय किया गया है.
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