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Who are the Palestinians: जानिए कौन हैं ये फिलीस्तीनी लोग, जो अपनी ही भूमि पर आज बन गए हैं रिफ्यूजी

Who are the Palestinians: पीएम मोदी ने हाल ही में एक ट्वीट करके बताया कि उन्होंने फिलिस्तीन के प्रेसीडेंट से बात की है और भारत फिलिस्तीन को मदद भेज रहा है. इस सबके बीच एक सवाल सबके मन में गूंज रहा है कि आखिर फिलिस्तीनी कौन हैं?

Origin of Palestinians Origin of Palestinians
हाइलाइट्स
  • धर्म से परे है फिलिस्तीनियों की पहचान 

  • कब अस्तित्व में आया फिलिस्तीनी शब्द 

इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष की चर्चा पूरे देशभर में हो रही है. हमास के हमले के बाद ज्यादातर देश इजरायल के सपोर्ट में खड़े हैं. लेकिन इस बीच, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ट्वीट किया कि उन्होंने फिलिस्तीन के राष्ट्रपति, महमूद अब्बास से बात की है और अल आहिल अस्पताल पर हुए हमले में मारे गए फिलिस्तीनी नागरिकों के लिए शोक व्यक्त किया. उन्होंने ट्वीट में यह भी लिखा कि भारत की तरफ से फिलिस्तीनी लोगों के लिए मदद भेजी जा रही है. 

पीएम मोदी ने जानकारी दी कि क्षेत्र में आतंकवाद, हिंसा और बिगड़ती सुरक्षा स्थिति पर उन्होंने अपनी गहरी चिंता साझा की. साथ ही, पीएम मोदी ने इजराइल-फिलिस्तीन मुद्दे पर भारत की लंबे समय से चली आ रही सैद्धांतिक स्थिति को दोहराया. भारत हमेशा से फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों की सुरक्षा की वकालत करता आया है. लेकिन अब सवाल है कि आखिर कौन हैं ये फिलिस्तीनी लोग. 

कब अस्तित्व में आया फिलिस्तीनी शब्द 
आज ज्यादातर लोगों को यही लगता है कि फिलिस्तीनियों का मतलब अरब मुस्लिम लोग. लेकिन यह सोच फिलिस्तीनियों के समृद्ध और जटिल इतिहास पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है और दशकों पुराने संघर्ष को पूरी तरह से धार्मिक लड़ाई में बना देती है जबकि यह मामला इससे कहीं ज्यादा है. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, फिलिस्तीन शब्द का प्रयोग पहली बार प्राचीन यूनानी इतिहासकार और जियोग्राफर, हेरोडोटस ने पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में फेनिशिया (मुख्य रूप से आधुनिक लेबनान) और मिस्र के बीच तटीय भूमि (कॉस्टल लैंड) के बारे में बताने के लिए किया था.

यह 'फिलिस्तिया' से लिया गया था, यह नाम ग्रीक लेखकों ने दक्षिण-पश्चिमी लेवंत के क्षेत्र को दिया था, मुख्य रूप से गाजा, अश्कलोन, अशदोद, एक्रोन और गाथ (सभी वर्तमान इज़राइल या फिलिस्तीन में) शहरों के आसपास. लेवंत पूर्वी भूमध्य सागर के आसपास के क्षेत्र के लिए ऐतिहासिक-भौगोलिक शब्द है, जो अफ्रीका और यूरेशिया के बीच लैंड ब्रिज का प्रतिनिधित्व करता है. 

शुरू से ही, फ़िलिस्तीन का उपयोग मुख्य रूप से एक स्थान के नाम के रूप में किया जाता था - और फिर, इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लिए एक नाम के रूप में. इससे जातीयता या धर्म का कोई सरोकार नहीं था. इस प्रकार, रोमन रिकॉर्ड इस शब्द का उपयोग करते समय ईसाइयों और यहूदियों के बीच अंतर नहीं करते हैं. 

धर्म से परे है फिलिस्तीनियों की पहचान 
7वीं शताब्दी ईस्वी में लेवंत पर अरबों की विजय के बाद, फ़िलिस्तीन शब्द का इस्तेमाल आधिकारिक तौर पर काफी हद तक बंद हो गया और यह 20वीं सदी तक जारी रहा. हालांकि, यह शब्द स्थानीय उपयोग में आम रहा, और इसे अरबी में "फिलास्तीन" के रूप में उधार लिया गया. इसे हिंदी में "फ़िलिस्तीन" कहा जाता है. जैसे-जैसे इस क्षेत्र का इस्लामीकरण हुआ, और अरबी सांस्कृतिक प्रभाव का प्रसार देखा गया, कई पहचानें उभरीं. इतिहासकार रशीद खालिदी ने अपनी एक किताब में जिक्र किया कि फिलिस्तीनियों के लिए पहचान हमेशा से कई अन्य स्तरों पर पहचान की भावना के साथ जुड़ी हुई है, चाहे वह इस्लामी हो या ईसाई, तुर्क या अरब, स्थानीय या सार्वभौमिक, या परिवार और आदिवासी. 

प्रथम विश्व युद्ध में ओटोमन सल्तनत की हार और 1922 में ओटोमन साम्राज्य के विघटन के बाद, ओटोमन सुल्तान के क्षेत्र, जिसमें फ़िलिस्तीन (आधुनिक तुर्की, सीरिया और अरब प्रायद्वीप और उत्तरी अफ्रीका के कुछ हिस्सों के अलावा) शामिल था, ब्रिटिश और फ्रांसीसियों के बीच बंट गए थे. फ़िलिस्तीन के ब्रिटिश शासनादेश ने फ़िलिस्तीन की भौगोलिक सीमा को परिभाषित किया. यही वह जनादेश था जिसने आखिर में 1947 में इज़राइल और फ़िलिस्तीन को बांटा.

फ़िलिस्तीनी कल्पना में, फ़िलिस्तीन वह भूमि है जो समुद्र (पूर्वी भूमध्य सागर) और नदी (ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण जॉर्डन, जो गैलिली सागर से मृत सागर तक गोलान हाइट्स से उत्तर से दक्षिण की ओर बहती है) के बीच स्थित है. 

आज फ़िलिस्तीनी कौन हैं?
आज, फ़िलिस्तीनी शब्द का तात्पर्य फ़िलिस्तीन राज्य (वेस्ट बैंक, गाजा और पूर्वी येरुशलम) में रहने वाले लोगों और तत्कालीन ब्रिटिश शासनादेश की क्षेत्रीय सीमाओं से आए शरणार्थियों से है जो कहीं और बस गए हैं. कुछ लोग जो वर्तमान में इजरायली क्षेत्रों में रहते हैं, वे भी खुद को फिलिस्तीनी के रूप में पहचान सकते हैं.

1968 का फ़िलिस्तीनी राष्ट्रीय चार्टर, वह वैचारिक दस्तावेज़ है जो आधुनिक फ़िलिस्तीनी राष्ट्रवाद का आधार है. और फ़िलिस्तीनियों की अरब पहचान पर ज़ोर देता है. चार्टर के अनुच्छेद 5 में कहा गया है: “फिलिस्तीनी वे अरब नागरिक हैं, जो 1947 तक आम तौर पर फिलिस्तीन में रहते थे, भले ही उन्हें वहां से बेदखल कर दिया गया हो या वे वहीं रह गए हों. उस तारीख के बाद फिलिस्तीनी पिता से जन्मा कोई भी व्यक्ति - चाहे फिलिस्तीन के अंदर हो या उसके बाहर - वह भी फिलिस्तीनी है."

जबकि इस क्षेत्र में ज्यादातर अरब मुस्लिम हैं, लेकिन चार्टर फिलिस्तीन को धार्मिक संदर्भ में परिभाषित नहीं करता है. इसका अनुच्छेद 6 कहता है: "जो यहूदी ज़ायोनी आक्रमण की शुरुआत तक आम तौर पर फ़िलिस्तीन में रहते थे, उन्हें फ़िलिस्तीनी माना जाएगा." हालांकि, 1948 के बाद बहुत कम मूल यहूदी हैं जिन्होंने अपनी फिलिस्तीनी पहचान को बनाए रखा है. लगभग सभी ने इजरायली पहचान को अपना लिया है. 

क्या हैं आबादी के आंकड़े 
आज ज्यादातर फिलिस्तीनी सुन्नी मुसलमान हैं. सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी के आंकड़ों के अनुसार, वेस्ट बैंक में 80-85 प्रतिशत आबादी और गाजा पट्टी में 99 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है. हालांक, इसमें यह स्पष्ट नहीं है कि इनमें कितने सुन्नी और शिया हैं. फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों में यहूदी सबसे बड़े धार्मिक अल्पसंख्यक हैं, और इनमें ज्यादातर वेस्ट बैंक के कब्जे वाले क्षेत्रों में रहने वाले ज़ायोनी निवासी शामिल हैं, जो आबादी का 12-14 प्रतिशत बनाते हैं.

सीआईए के अनुसार, फ़िलिस्तीनी ईसाई जनसंख्या का 2.5 प्रतिशत हैं, हालांकि कुछ अन्य अनुमानों के अनुसार उनकी संख्या जनसंख्या की 6 प्रतिशत तक है. वेस्ट बैंक और गाजा दोनों ही संपन्न ईसाई समुदायों का घर हैं जो इस क्षेत्र में कई सहस्राब्दियों से रह रहे हैं.