प्रधानमंत्री मोदी के चेन्नई दौरे में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने एक बार Katchatheevu द्वीप को श्रीलंका से वापस लाने का मुद्दा उठाया. यह वो द्वीप है जिसकी मांग तमिलनाडु सालों से कर रहा है. दरअसल भारतीय मछुआरे जब यहां मछली पकड़ने जाते हैं तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है.
ज्वालामुखी विस्फोट से बना है कच्चातिवु द्वीप
कच्चातिवु द्वीप palk strait में मौजूद है. ज्वालामुखी विस्फोट से 14वीं सदी में इस द्वीप का निर्माण हुआ था. 285 एकड़ के इस द्वीप का ब्रिटिश शासन के दौरान भारत और श्रीलंका दोनों इस्तेमाल करते थे. रामनाड के राजा (वर्तमान में रामनाथपुरम, तमिलनाडु) कच्चातीवु द्वीप के मालिक थे लेकिन बाद में इसे मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा बना दिया गया. 1921 में इस द्वीप पर भारत और श्रीलंका दोनों ने अपना दावा किया. लेकिन विवाद अनसुलझा रहा.
कब हुआ विवाद
कच्चातिवु द्वीप सरकारी दस्तावेजों में 1974 तक भारत का हिस्सा बना रहा. इस क्षेत्र का विवाद तब उभरा जब दोनों देशों ने 1974-76 के बीच चार समुद्री सीमा समझौतों पर हस्ताक्षर किए. इस समझौते के बाद भारत और श्रीलंका की अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा तय कर दी गई. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1976 में श्रीलंका को यह द्वीप इस शर्त पर तोहफे में दिया कि भारतीय मछुआरों का यहाँ मछली पकड़ने का अधिकार सुरक्षित रहेगा.
आज तक चल रहा विवाद
समझौते के बावजूद भारतीय मछुआरे मछलियों को छांटने और अपना जाल सुखाने यहां आते रहे. लेकिन बाद में श्रीलंकाई नौसेना ने भारतीयों मछुआरों को पकड़ना शुरू कर दिया. तमिलनाडु सरकार 1991 से ही वापस लेने की मांग कर रही है. जयललिता इस मामले को सुप्रीम कोर्ट कर लेकर गईं लेकिन अभी तक इसका कोई हल नहीं निकला है.