रूस और यूक्रेन के बीच हो रहा युद्ध अभी तक जारी है. आकार के हिसाब से देखें, तो रूस दुनिया का सबसे बड़ा देश है, वहीं यूक्रेन 45वां है. ऐसे में रूस ये नहीं चाहता है कि यूक्रेन नाटो (NATO) का मेंबर बने. अब इसी कड़ी में रूस के राष्टपति ने अपने 27 फरवरी को परमाणु हथियारों को 'स्पेशल अलर्ट' पर रखने का आदेश दे दिया है. परमाणु हथियारों को तबाही का सबसे बड़ा हथियार माना जाता है. आखिर कोई हिरोशिमा-नागासाकी को भला कैसे भूल सकता है. फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट के मुताबिक रूस के पास सबसे ज्यादा परमाणु हथियार है. इसकी संख्या 5,977 है.
लेकिन क्या परमाणु हथियारों को लेकर भी कोई प्रोटोकॉल हैं? इसकी चाबी किसके पास होती है? या फिर कोई भी इसे किसी भी देश पर इस्तेमाल कर सकता है? इस वक्त रूस के अलावा अमेरिका, चीन और ब्रिटेन समेत कई और मुल्कों के पास परमाणु हथियार मौजूद हैं. चलिए जानते हैं कि आखिर परमाणु बम हमला कैसे किया जाता है और कौन इसके आदेश दे सकता है.
किसके पास परमाणु हथियार का बटन?
सबसे पहले आपको बता दें कि इसके लिए कोई बटन नहीं होता है, या ऐसा बिल्कुल नहीं है कि प्रधानमंत्री चाहे जब चाहे किसी भी देश पर हमला कर दे. नहीं. बल्कि इसके लिए एक लम्बी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. हालांकि, किसी भी परमाणु हमले पर फैसला करने की शक्ति हर देश की अलग-अलग होती है. जैसे भारत में ये शक्ति प्रधानमंत्री के पास है. अमेरिका और रूस के पास में ये राष्ट्रपति के पास होती है. ब्रिटेन में ये शक्ति प्रधानमंत्री के पास है.
भारत- प्रधानमंत्री और न्यूक्लियर कमांड अथॉरिटी
सबसे पहले भारत की बात करें, तो प्रधानमंत्री न्यूक्लियर कमांड अथॉरिटी (NCA) का नेतृत्व करते हैं, जिसका काम परमाणु संबंधी जो कार्य होते हैं उन्हें अंजाम तक पहुंचाना होता है. प्रधानमंत्री के आदेश पर ही यह परमाणु बम संबंधी ऑपरेशन लॉन्च किया जाता है. पीएम के पास एक स्मार्ट कोड होता है, जिसके बिना परमाणु बम छोड़ा नहीं जा सकता है. इस स्मार्ट कोड को देने के बाद ही न्यूक्लियर टीम परमाणु हमला करती है. हालांकि, इस कोड को शेयर करने के पहले प्रधानमंत्री अपनी पूरी कैबिनेट कमेटी, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, चेयरमैन ऑफ चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी आदि से चर्चा करते हैं.
अमेरिका और न्यूक्लियर फुटबॉल
अमेरिकी में राष्ट्रपति के पास न्यूक्लियर हमला करने की अथॉरिटी होती है. इसीलिए राष्ट्रपति के साथ हर समय कुछ खास लोग होते हैं, जिनके पास एक ब्रीफकेस होता है जिसे न्यूक्लियर फुटबॉल कहा जाता है. ये एक फुटबॉल की तरह का बैग होता है, जो काले रंग का चमड़े का ब्रीफकेस जैसा दिखता है. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, इस ब्रीफकेस में एक पेज भी होता है जिसमें वॉर प्लान, परमाणु मिसाइलों और उनके टारगेट का पूरा ब्यौरा होता है.
रूस और न्यूक्लियर ब्रीफकेस
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, अमरीका के न्यूक्लियर फुटबॉल की तरह ही रूस के राष्ट्रपति के पास भी ये शक्ति होती है. ये ब्रीफ़केस हमेशा राष्ट्रपति के आसपास ही होता है. अगर रूस पर किसी भी तरह के हमले की नौबत आती है, तो ब्रीफ़केस का अलर्ट अलार्म बजने लगता है और फ्लैशलाइट जल जाती हैं. इसके साथ इमरजेंसी की स्थिति में उन्हें किसी टेलीफोन की जरूरत नहीं होती, वे इसी ब्रीफकेस के जरिए सेना के कमांडरों और प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री से बात कर सकते हैं.
ब्रिटेन और लास्ट रिज़ॉर्ट लेटर
आपको बता दें, ब्रिटेन की सेना के पास ट्राइडेंट परमाणु मिसाइलों वाली चार पनडुब्बियां हैं, जिनमें से एक नॉर्थ अटलांटिक महासागर में तैनात है, केवल एक इशारा मिलने पर ये किसी पर भी परमाणु हमला कर सकती है. इस इशारे को करने की अथॉरिटी केवल ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के पास होती है. पीएम के केवल एक आदेश पर ही रॉयल नेवी वैनगार्ड क्लास की पनडुब्बी से परमाणु हमला कर सकती है.
हालांकि, इस हमले की भी प्रक्रिया होती है. प्रधानमंत्री पहले नौसेना के दो अधिकारियों को मिसाइल लॉन्च का अपना एक सीक्रेट कोड बताते हैं. उन दोनों अधिकारियों के पास भी सीक्रेट कोड होते हैं, वो भी अपने-अपने कोड बताते हैं.
चीन के पास हैं नीतियां
दरअसल, चीन में किसी एक इंसान के पास इस हमले को करने की अथॉरिटी नहीं है. बल्कि चीन में कई नीतियां बनाई गई हैं. चीन दुनिया के उन देशों में शामिल है जिनके पास परमाणु हथियार तो हैं लेकिन उसकी नीति पहले हमला करने की नहीं है. हालांकि, दूसरे देशों के हमलों से बचने के लिए चीन ने कई इंतजाम किये हुए हैं. उसने लिए उसने गहरी सुरंगों का नेटवर्क बनाया है. कुछ सुरंगें तो पहाड़ी इलाक़ों में ज़मीन के नीचे सौ-सौ मीटर की गहराई में बनी हुई हैं.
इसके साथ, चीन की सेना क्या करेगी, कहां हमला करेगी? कैसे करेगी? इन सबका फैसला कम्युनिस्ट पार्टी के पोलितब्यूरो की स्टैंडिंग कमिटी करती है. हालांकि, बीबीसी लिखता है कि इसे करने का अंतिम कमिटी का होता है या फिर राष्ट्रपति का, ये वाकई किसी को नहीं पता है.