

रूस -यूक्रेन के बीच जंग जारी है. इस लड़ाई को तीसरे विश्व युद्ध का नाम भी दिया जा रहा है. इसी बीच दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन के लिए जर्मनी अधिकृत फ्रांस में जासूसी करने के लिए अपनी जान दांव पर लगाने वाली नूर इनायत खान की याद आने लगी हैं. भारतीय मूल की जासूस नूर इनायत खान ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हिटलर जैसे तानाशाह की जासूसी की थी. नूर ऐसा करने वाली पहली दक्षिण एशियाई महिला बनी जिनके सम्मान में ब्लू प्लाक (Blue Plaque) का ऐलान किया गया था. बता दें कि सीक्रेट एजेंट नूर खान पहली महिला रेडियो ऑपरेटर थीं जिन्हें विश्व युद्ध के दौरान फ्रांस भेजा गया था.
रूस के मास्को में पैदा होने वाली नूर इनायत खान एक भारतीय पिता और अमेरिकी मां की संतान थी. नूर का परिवार पहले विश्व युद्ध के दौरान लंदन चला गया इसके बाद वह पेरिस चले गए. नूर का बचपन पेरिस में बीता लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के दौरान नूर ब्रिटेन चली आई. नूर इनायत ख़ान मैसूर के महाराजा टीपू सुल्तान की वंशज थीं.
नूर इनायत खान के पिता इनायत खान की पैदाइश बड़ौदा में हुई थी. वह सूफी मत को मानते थे और पश्चिम में सूफी आदेशों की स्थापना उन्होंने ही की थी. इनायत खान के नाना प्रसिद्ध संगीतकार उस्ताद मौला बख्श खान थे, वहीं मौला बख्श की पत्नी कासिम बीबी मैसूर के टीपू सुल्तान की पोती थीं, जो अमेरिका में रहती थी.
लंदन में पढ़ी बढ़ी नूर 1940 के दौरान एक वालंटियर के तौर पर ब्रितानी सेना में शामिल हुई. इस सब के पीछे नूर का मानना था कि जिस देश ने उन्हें अपनाया उन्हें उस देश की मदद करनी चाहिए. उनका मकसद फासीवाद से लड़ना था. नूर पहले सेना में शामिल हुई फिर विंस्टन चर्चिल के बनाए एक गुप्त खुफिया संगठन में एक विशेष अभियान कार्यकारी (एसओई) के रूप में काम किया. इसी दौरान नूर को खास ट्रेनिंग के बाद रेडियो ऑपरेटर बनाकर पेरिस भेजा गया. नूर को जिस अभियान के लिए पेरिस भेजा जा रहा था उसमें रिस्क बहुत ज्यादा था, ऐसा भी माना जा रहा था कि नूर छह सप्ताह से ज्यादा समय तक जिंदा नहीं रह पाएंगी.
उस वक्त नूर इनायत खान केवल 29 साल की थी. फ्रांस में उन्होंने नाजी और हिटलर से जुड़ी कई सारी गुप्त जानकारियां इकट्ठा की. हालांकि, इस दौरान नूर के नेटवर्क के कई सदस्यों को गिरफ्तार किया जा रहा था लेकिन नूर फ्रांस से लौटी नहीं. इन गिरफ्तारियों के कुछ महीनों बाद नूर को भी पकड़ लिया गया. इसके पीछे की वजह ये थी कि नूर ने अपने किसी करीबी के सहयोगी की बहन से अपना राज शेयर कर दिया. और नूर के सारे राज किसी नाजी एजेंट्स के सामने खोल दिए गए. इसके बाद साल 1943 में नूर को उनके घर से गिरफ्तार कर कई दिनों तक प्रताड़ित किया गया, ताकि सारी बातों की जानकारी नूर से ली जा सके.
कई कोशिशों के बाद भी ब्रिटेन के खुफिया मिशन की जानकारी न मिलने के बाद नूर को म्यूनिख के पास दक्षिणी जर्मनी में एक यातना शिविर में भेज दिया गया. यहीं, 1944 को नूर इनायत खान को गोली मार दी गई. साथ में तीन और महिला जासूसों को भी गोली मारी गई. बता दें कि मौत के वक्त नूर की उम्र महज 30 साल थी. नूर ने मरते वक्त आजादी का नारा दिया था.
नूर की बहादुरी को उनकी मौत के बाद फ्रांस में 'वॉर क्रॉस' देकर सम्मानित किया गया. ब्रिटेन में उन्हें क्रॉस सेंट जॉर्ज दिया गया.