scorecardresearch

Maha Kumbh 2025: मिलिए महाकुंभ में आए रुद्राक्ष बाबा से और जानिए नागा साधु बनने का रहस्य!

प्रयागराज में लगने वाले महाकुंभ की शुरुआत तो 13 जनवरी से होगी लेकिन आस्था के रंग अभी से महाकुंभ में बिखरने लगे हैं. एक तरफ जहां महाकुंभ में देश के अलग अलग हिस्सों से साधु सन्यासियों का आगमन शुरू हो गया है.

रुद्राक्ष बाबा दिगंबर विजय पुरी रुद्राक्ष बाबा दिगंबर विजय पुरी
हाइलाइट्स
  • कठिन परिश्रम के बाद बनते हैं नागा साधु

  • नागा साधु बनने की कठिन प्रक्रिया

प्रयागराज में लगने वाले महाकुंभ की शुरुआत तो 13 जनवरी से होगी लेकिन आस्था के रंग अभी से महाकुंभ में बिखरने लगे हैं. एक तरफ जहां महाकुंभ में देश के अलग अलग हिस्सों से साधु सन्यासियों का आगमन शुरू हो गया है. वहीं दूसरी तरफ नागा साधु ने भी अपनी धूनी रमा ली है. महाकुंभ में हमारी मुलाकात एक ऐसे ही नागा संन्यासी से हुई, उन्होंने अपने शरीर पर भारी मात्रा में रुद्राक्ष की मालाओं को धारण कर रखा था. बाबा का दावा है कि इन्होंने अपने मुकुट और शरीर पर कुल सवा लाख रुद्राक्ष धारण किए हैं. दिगंबर विजय पुरी नाम की यह नागा साधु मध्य प्रदेश के ओंकारेश्वर से महाकुंभ में पहुंचे हैं.

बातचीत के दौरान रुद्राक्ष वाले नागा साधू दिगंबर विजय पुरी ने अपने शरीर पर इतने भारी मात्रा में रुद्राक्ष धारण करने के संदर्भ में बताया कि मेरे मन को शांति मिलती है इसलिए मैंने रुद्राक्ष धारण किया है. उन्होंने बताया कि नागा साधुओं का वस्त्र और आवरण भस्म ही होता है. उन्होंने बताया कि वह पूरे महाकुंभ के दौरान यहां पर स्नान ध्यान, भजन और तपस्या करेंगे.

कठिन परिश्रम के बाद बनते हैं नागा साधु
दिगंबर विजय पुरी ने बताया कि नागा साधु बनने के लिए बहुत परिश्रम करना पड़ता है और 12-13 साल के कठिन परिश्रम के बाद नागा साधु बनते हैं. हमारा जीवन बहुत ही अच्छा जीवन है. हम भजन कर रहे हैं. आनंद ले रहे हैं. इसी में हमारा सारा सुख है. हम लोगों की नियम और नीति यही है कि हम कपड़े धारण नहीं कर सकते. भस्म ही हमारा आवरण है और यही हमारी परंपरा है. हमने अपने शरीर पर 35 किलो रुद्राक्ष का वजन धारण किया है और मैं हमेशा ही धारण किए रहता हूं. उन्होंने आगे बताया कि हम समस्त योनियों से मुक्ति पाने के लिए नागा साधु बने हैं. हमने यह वीणा इसलिए उठाई है कि बार-बार जन्म मृत्यु से मुक्ति मिल जाए.

सम्बंधित ख़बरें

नागा साधु बनने की कठिन प्रक्रिया
नागा बनने की प्रक्रिया के बारे में विजय  गिरी ने बताया कि नागा बनने के बड़े ही गुप्त नियम होते हैं. रात में दो से ढाई बजे के बीच दीक्षा दी जाती है. उस समय पर वहां कोई भी नहीं होता है और यह कार्यक्रम 48 घंटे तक लगातार चलता है. दिगंबर विजय गिरी ने बताया कि कामवासना की मुक्ति के लिए इस पर विजय प्राप्त करना पड़ता है और मन को मारना पड़ता है क्योंकि मन तो बहुत चंचल है. हमको मन को मार कर सात्विक जीवन जीना है.

दिगंबर विजय गिरी ने बताया कि कामवासना से मुक्ति के लिए आयुर्वेद की औषधि पिलाई जाती है. उन्होंने बताया कि पहले तो शारीरिक रूप से झटका दिया जाता था लेकिन इस प्रक्रिया में कई लोगों की मौत हो जाती थी. इसलिए अब आयुर्वेदिक दवा पिलाई जाती है और यह औषधि संस्कार के समय पर दी जाती है. कामवासना की समाप्ति के सवाल पर बाबा ने कहा कि यह सब मन का खेल है और आप मन की बात को मत मानिए बल्कि आत्मा की बात को मानिए.